नबी-ए-करीम ﷺ नूर हैं या नहीं ? लास्ट किस्त

आइए देखते हैं क्या क़ुरआन-ए-करीम में नबी करीम ﷺ की ज़ात पर नूर का इतलाक़ आया है?

जी हां क़ुरआन और मुफ़स्सिरीन का मुताल’अ करने के बाद पता चलता है की कुरान में मुत’अद्दिद मकाम  पर नबी करीम ﷺ की ज़ात पर नूर का इतलाक़ आया है।

क़ुरआन-ए-करीम की एक बड़ी मशहूर और मारूफ आयात-ए-करीमा है जिसमें अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है।

“قَدْ جَآءَكُمْ مِّنَ اللّٰهِ نُوْرٌ وَّ كِتٰبٌ مُّبِیْنٌ”

तर्जुमा: “बेशक अल्लाह की तरफ से तुम्हारे पास एक नूर आ गया और एक रोशन किताब।” (सूरह अल-माइदा आयात 15)

इस आयत की तफ़्सीर में मुफस्सिरीन ने जो अक़्वाल किए हैं उन अक़्वालो में से मजबूत अक़्वाल ये है।

इस आयत की तफ्सीर में सहाबी-ए-रसूल हिब्र-उल-उम्माह हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते हैं- नूर से मुराद नबी करीम ﷺ की ज़ात है।

और इस आयत की तफ़्सीर करते हुए हज़रत अल्लामा जलालुद्दीन अल-सुयूती रदियल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते हैं नूर से मुराद नबी करीम ﷺ की ज़ात है। (तफ़्सीर-ए-जालालैन पेज नंबर 97)

और इमाम फखरुद्दीन राज़ी रदियल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते हैं नूर से भी मुराद हुज़ूर ﷺ की ज़ात और किताब से मुराद भी हुजूर ﷺ की ज़ात हैं। (तफ़्सीर-ए-कबीर 4/327)

यहां पर बात क्लियर हो गई कि हर मकातिब-ए-फ़िक्र के उलेमा में से जिस-जिस ने भी इस आयत की तफ़्सीर की उन सब ने हुज़ूर की ज़ात को “नूर” ही कहा है।

यानी हुज़ूर को नूर कहना कुरान की रुह से जायज़ है अब जो हुज़ूर को नूर ना माने वो तमाम उलेमा के ख़िलाफ़ अपना अकीदा रखा हुआ है।

आईये एक हदीस-ए-पाक और देखते चलें-

सबसे पहले अल्लाह ने अपने नूर से हमारे नबी ﷺ के नूर को पैदा किया!

हज़रते जाबिर रदियल्लाहु तआला अन्हु ने हुज़ूर से जब पूछा कि अल्लाह तआला ने सबसे पहले किस चीज़ को पैदा फरमाया इस पर रसूलल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया-

“ऐ जाबिर! बेशक़ अल्लाह ने सबसे पहले अपने नूर से तेरे नबी के नूर को पैदा फरमाया!”

रेफरेन्सेस:

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  • ज़ुर्कानी शरीफ जिल्द 1 पेज 46
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  • अनवारुल मुहम्मदिया पेज 9

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