गाने सुनने वाले मुसलमान हो जाएं खबरदार, कहीं गानों की वजह से आप ईमान से हाथ तो नहीं धो बैठे?

आईए सबसे पहले यह जानते हैं कि इस्लाम में गाने सुनने की क्या हैसियत है? क्या इस्लाम में म्यूज़िक सुनना जायज़ है ? चलिए, इन्हीं सभी सवालों के जवाब आज मैं आपको अपने इस आर्टिकल में देने वाली हूँ।

इस्लाम में मूसीक़ी यानी गाना (म्युज़िक) बजाना और सुनना हराम है। कुरान करीम में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है-

وَمِنَ النَّاسِ مَنْ يَّشْتَرِي لَهْوَ الْحَدِيثِ لِيُضِلَّ عَنْ سَبِيلِ اللهِ بِغَيْرِ عِلْمٍ وَيَتَّخِذَهَا هُزُوًا أُولَئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ مُهِينٌ

-सूरह लुकमान आयत नंबर 6

आयत का हिंदी तर्जुमा: और बाज़ लोग ऐसे भी हैं, जो इन बातों के खरीददार बनते हैं। जो अल्लाह से ग़ाफ़िल करने वाली हैं। ताकि अल्लाह की याद से बे समझे गुमराह करें। और उसकी हंसी उड़ाए, ऐसे लोगों के लिये ज़िल्लत का अज़ाब है।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदी अल्लाहु ता’आला अन्हु  से इस आयत के बारे में पूछा जाता तो, आप क़सम खा कर फरमाते थे। के  “لهو الحدیث” से मुराद गाना है। यही तफ़्सीर हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास, हज़रत जाबिर, हज़रत इकरमा, सईद बिन ज़ुबैर, मुजाहिद, हसन बसरी और अम्र बिन शुऐब रहिमुल्लाह जैसे जलीलुल क़द्र हज़रात से मंक़ूल है।

हदीस शरीफ में मेरे और आपके प्यारे आक़ा अहमद-ए-मुस्तफा मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु ताला अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया “मैं मूसीक (म्यूजिक) और उसके आलात को तोड़ने आया हूं”

-मुसनद इमाम अहमद जिल्द 5 पेज नंबर 257-268

एक और हदीस ए पाक में है नबी करीम सल्लल्लाहु ताला अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया मुझे ढोल और बांसुरी तोड़ने का हुक्म दिया गया है।

फिरदौस-उल-अखवार, जिल्द-1, पेज 483, हदीसः 1612

कुरान की आयत और हदीस-ए-मुस्तफ़ा से पता चलता है कि इस्लाम में गाना बजाना और सुनना यह सब हराम है।

और आजकल आपको काफी सारे ऐसे सोंग्स नजर आ रहे होंगे, जिनकी लिरिक्स ग़लत हैं, मज़हब-ए-इस्लाम के नज़रिए से बेहद आपत्तिजनक हैं। वह सीधा शिर्क व कुफ्र की तरफ जाते हैं।

जैसे की माज़अल्लाह एक गाने की लाइन है ‘तू मिला तो ख़ुदा का सहारा मिल गया’, ‘जन्नतें सजाई मैंने तेरे लिए, छोड़ दी ख़ुदाई मैंने तेरे लिए’, ‘तू ही मेरा दीन तू ही मेरा कलमा’, ‘ख़ुदा भी जब तुझे मेरे पास देखता होगा, इतनी अनमोल चीज़ दे दी कैसे, सोचता होगा।’

और एक गाना है। ‘तुझ में रब दिखता है, यारा मैं क्या करूँ’। यह सारे सोंग्स कुफ़्री हैं। सुनने वाला इस्लाम से ख़ारिज है। उसको चाहिए कि वह दोबारा कलमा पढ़ें और तजदीद ईमान करें।

और दावे के साथ अक्सर मुसलमान इसको सुनते हैं और उनको पता ही नहीं कि वह कब इस्लाम के सर्कल से बाहर हो गए। इसलिए इस्लाम में म्युज़िक हराम है गानों से दूर रहें और कुरान को अपनी जिंदगी का मामूल बनाएं।

उसके बाद अगर कहेंगे कि फिलीस्तीन के मुसलमान परेशान हैं तब समझ में आता है। की बाक़ई आप लोग फिलिस्तीन के फ़िक्रमंद हो, वरना आप झूठे हो।

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