सुन्नियों पर शिर्क का इल्ज़ाम लगाने वाला ही दायरा-ए-इस्लाम से बाहर है।
आइये जानते हैं शिर्क किसे कहते हैं, (Shirk Kise Kahte Hain)?
शिर्क तीन प्रकार के होते हैं।
1. शिर्क-फिल-इबादत
2. शिर्क-फ़िज़-ज़ात
3. शिर्क-फिस-सिफ़ात
- शिर्क-फिल-इबादत
शिर्क-फिल-इबादत ये है की अल्लाह त’आला के अलावा किसी और को इबादत के लायक समझा जाए।
उदहारण के साथ समझते हैं। जैसे मुशरिकीन-ए-मक्का के वो खाना-ए-काबा में 360 बुत उन्होंने रखे थे। औरवह लोग उसकी पूजा करते थे। वे लोग अल्लाह के सिवा उन बेजान पत्थरों को पूजते थे। कुल-मिलाकर अल्लाह के सिवा किसी और कि इबादत करना यह शिर्क-फ़िल-इबादत है।
لا إله إلا الله
हिंदी तर्जुमा: ‘अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं’
- शिर्क-फ़िज़-ज़ात
शिर्क-फिज़-ज़ात ये है कि तसव्वुर किया जाए की ख़ालिक़-ए-कायनात रब्बुल आलामीन की दो ज़ात हैं ऐसा तसब्बुर शिर्क-फिज़-ज़ात है।
और अल्हम्दुलिल्लाह मुसलमान ना तो शिर्क-फिल-इबादत में मुब्तिला हैं। और ना ही शिर्क-फिज़-ज़ात में मुब्तिला है। क्योंकि न तो वो अल्लाह के सिवा किसी और को इबादत के लायक समझता है और न वो अल्लाह के जैसा किसी और को समझता है।
- शिर्क-फिस-सिफ़ात
शिर्क-फिस-सिफ़ात क्या है इसको समझना बहुत ज़रूरी है। जो अल्लाह तआला की सिफ़त हैं उनके बराबर किसी और कि सिफ़त तसव्वुर करना ये शिर्क-फीस-सिफ़ात है।
क़ुरआन-ए-मजीद में रब तबारक बतआला इर्शाद फरमाता है।
اِنَّ اللّٰهَ بِالنَّاسِ لَرَءُوْفٌ رَّحِیْمٌ
आयत का हिंदी तर्जुमा: ‘बेशक, अल्लाह त’आला लोगों पर रऊफ और रहीम है।’
अल्लाह रऊफ भी है और अल्लाह रहीम भी है।
अल्लाह पाक क़ुरआन-ए-मजीद में दूसरी जगह पर इरशाद फरमाता है।
لَقَدْ جَآءَكُمْ رَسُوْلٌ مِّنْ اَنْفُسِكُمْ عَزِیْزٌ عَلَیْهِ مَا عَنِتُّمْ حَرِیْصٌ عَلَیْكُمْ بِالْمُؤْمِنِیْنَ رَءُوْفٌ رَّحِیْمٌ
आयत का हिंदी तर्जुमा: ‘बेशक! तुम्हारे पास तुम ही में से वो रसूल तशरीफ़ लाये। जिन पर तुम्हारा मशक्कत में पड़ना भारी है। तुम्हारी भलाई चाहने वाले हैं मोमिनों पर रऊफ और रहीम हैं।’
एक तरफ अल्लाह को भी रऊफ और रहीम कहा और दूसरी तरफ रसूल को भी रऊफ और रहीम कहा गया है।
अब ज़हन में एक सवाल पैदा होगा कि ये तो सिफ़त एक जैसी हो गयी। और ये दोनों ही क़ुरआन की आयतें हैं। और क़ुरआन तो शिर्क से दूर करता है।
मुफ़स्सिरीन ने इस विषय पर बहुत ही प्यारी बात फ़रमाई। रऊफ अल्लाह भी है। और हुज़ूर पुरनूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी हैं। लेकिन बराबरी नही है। अल्लाह का रऊफ और रहीम होना ज़ाती है। और हुज़ूर का रऊफ और रहीम होना अल्लाह की अता से है।
अल्लाह हमेशा से रऊफ और रहीम है। और हुज़ूर तब से रऊफ और रहीम हैं। जब से अल्लाह ने उनको ये मक़ाम अता किया है। जब ये फ़र्क़ हो गया तो बराबरी न रही और जब बराबरी न रही तो शिर्क भी लाज़िम ना आया।
अब दूसरी मिसाल भी सुनें।
قُلْ لَّا یَعْلَمُ مَنْ فِی السَّمٰوٰتِ وَ الْاَرْضِ الْغَیْبَ اِلَّا اللّٰهُؕ
आयत का हिंदी तर्जुमा: ‘तुम फरमा दो जो कोई आसमान और ज़मीन में है। अल्लाह के सिवा कोई ग़ैब नहीं जानता।’
एक तरफ फरमाया की अल्लाह ही ग़ैब जानता है। और दूसरी तरफ फ़रमाया-
عٰلِمُ الْغَیْبِ فَلَا یُظْهِرُ عَلٰى غَیْبِهٖۤ اَحَدًاۙ اِلَّا مَنِ ارْتَضٰى مِنْ رَّسُوْلٍ
आयत का हिंदी तर्जुमा: ‘ग़ैब को जानने वाला ग़ैब का इल्म किसी को नहीं देता। मगर अपने रसूलों को पसंद फरमाता है। और उन्हें ग़ैब का इल्म अता फरमाता है।’
इन दोनों आयतों का मतलब मुफ़स्सिरीन ने ये बयान किया हक़ीक़ी तौर पर ग़ैब जानने वाला सिर्फ अल्लाह है। और अल्लाह की अता के वगैर कोई कुछ नहीं जानता। और जब अल्लाह अता फरमाए तो महबूब-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम अल्लाह की अता से इल्म-ए-ग़ैब जानते हैं। अल्लाह भी ग़ैब जानता है। और रसूल भी लेकिन बराबरी नही है। अल्लाह का इल्म ज़ाती है। और हुज़ूर का इल्म अल्लाह की अता से है।
एक और क़ुरआन की आयत की रोशनी में इसको क्लियर करते हैं।
اِنَّمَا وَلِیُّكُمُ اللّٰهُ وَ رَسُوْلُهٗ وَ الَّذِیْنَ اٰمَنُوا
आयत का हिंदी तर्जुमा: ‘तुम्हारे मददगार हैं अल्लाह और उसके रसूल मददगार हैं और ईमान वाले मददगार हैं।’
अब यहां पर भी वो ही फ़र्क़ है। अल्लाह ज़ाती मददगार है। और रसूल की और नेक मोमिनों की मदद अल्लाह की अता से है।
एक और आख़री क़ुरआन की आयत के साथ इसको समझते हैं।
ذٰلِكَ بِاَنَّ اللّٰهَ مَوْلَى الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا
आयत का हिंदी तर्जुमा: ‘मुसलमानों का मौला मददगार अल्लाह है।’
एक और आयत मुलाहिज़ा फरमाइए।
اِنَّ اللّٰهَ هُوَ مَوْلٰىهُ وَ جِبْرِیْلُ وَ صَالِحُ الْمُؤْمِنِیْنَۚ
आयत का हिंदी तर्जुमा: ‘बेशक! अल्लाह उनका मौला है। मददगार है। और जिब्रील अलैहिस्सलाम मौला मददगार हैं।’
अब यहाँ पर भी वो ही फ़र्क़ है। अल्लाह ज़ाती मददगार है। और जिब्रील अलैहिस्सलाम, नेक मोमिनीन अल्लाह की अता से हैं। जब अल्लाह के मददगार होने का ज़िक्र कर दिया गया तो फिर मोमिनीन रसुल्लाह और जिब्रील अलैहिस्सलाम की मदद का क्यों ज़िक्र किया गया। क्या अल्लाह की मदद नाकाफ़ी है? हरगिज़ नहीं! असल बात ये है कि क़ुरआन ये अक़ीदा बयान कर रहा है के अल्लाह त’आला ही मदद फरमाएगा। और अल्लाह त’आला अपने नेक बंदों को मक़ाम और बुलंदी अता फरमाता है। और उनसे वाबस्ता रहेंगे। और उनकी वारगाह में हाज़िर होंगे तो अल्लह त’आला करम फ़रमाएगा। और उनके वसीले से हमारा बेड़ा पार फ़रमाएगा।
मज़ीद इन आयात-ए-मुबारका بِإِذْنِ اللَّهِ का मफ़हूम समझ आता है।
बताइए बीमारों को शिफा देने वाला कौन? अल्लाह! मुर्दों को ज़िंदा कौन करता है? अल्लाह! अंधों को बीनाई आता कौन करता है? बेशक अल्लाह!
लेकिन हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम एलान फरमा रहे हैं। सूरह अल इमरान आयत नंबर 49 में।
وَ اُبْرِئُ الْاَكْمَهَ وَ الْاَبْرَصَ وَ اُحْیِ الْمَوْتٰى بِاِذْنِ اللّٰهِۚ
आयत का हिंदी तर्जुमा: मैं बीमारों को शिफा देता हूँ। मादरज़ात अंधों को आंखें देता हूँ। मरीज़ों को शिफा देता हूं। और मैं मुर्दों को ज़िंदा करता हूँ।
लेकिन आप ख़ुद वजाहत कर रहे हैं। कहते हैं। करता मैं हूँ। लेकिन अल्लाह की अता से। तो जब अता और ज़ाती का फ़र्क़ हो गया तो बराबरी ना हुई और जब बराबरी ना हुई तो शिर्क न हुआ।
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम के दौर में मुनाफिक़ीन थे। और मुनाफिक़ीन भी इन चीजों को न समझ सके। और उन्होंने इतनी बड़ी जुरअत की इस फ़र्क़ को न समझने की वजह से के नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम पर भी शिर्क का इल्ज़ाम लगा दिया। म’आज़-अल्लाह!
और आज यही हाल देवबंदी और नजदियों का भी है। शिर्क से नीचे तो कोई बात ही नहीं करते।
ईमाम फखरुद्दीन राज़ी रहमतुल्लाह अलैहि तफ़सीर-ए-कबीर में जिल्द नंबर चार, सफ़ह नंबर 150 पर लिखते हैं।
إن النبي – صلى الله عليه وسلم – كان يقول : من أحبني فقد أحب الله ومن أطاعني فقد أطاع الله ، فقال المنافقون : قد قارب هذا الرجل الشرك ، وهو أن نهى أن نعبد غير الله ، ويريد أن نتخذه ربا كما اتخذت النصارى عيسى ، فأنزل الله هذه الآية
हिंदी तर्जुमा: नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया- जिसने मुझसे मोहब्बत की उसने अल्लाह से मोहब्बत की। तो मुनाफ़िक़ बोले ये नबी शिर्क के करीब हो गए हैं। हमें तो मना करते हैं कि अल्लाह की सिवा किसी की इबादत न करो और चाहते ये हैं कि हम इन्हें ख़ुदा मान लें। जैसा कि ईसाइयों ने हज़रत ईसा को ख़ुदा तसव्वुर कर लिया था। तो अल्लाह त’आला ने इस आयत को नाज़िल किया।
مَنْ یُّطِعِ الرَّسُوْلَ فَقَدْ اَطَاعَ اللّٰهَۚ
आयत का हिंदी तर्जुमा: ‘जिसने रसूल की इताअत की उसने दर हक़ीक़त अल्लाह की इताअत की।’
अब यहां पर एक बात काबिल-ए-गौर है। मुनाफिक़ीन ने रसूलल्लाह पर शिर्क का इल्ज़ाम इस वजह से लगाया के वो ये कहने लगे कि हुज़ूर ने अपनी ज़ात को अल्लाह से मिला दिया। म’आज़-अल्लाह!
अल्लाह, अल्लाह है। और ये अल्लाह के बन्दे ये कैसे हो सकता है। कि इनकी मोहब्बत अल्लाह की मोहब्बत बने। क़ुरआन ने इनका रद्द किया। और आज उलेमा-ए-अहले सुन्नत भी इनकी औलादों का रद्द करते हैं। यहां एक बात और अर्ज़ करूँ। अल्लाह त’आला नेक बंदों को मक़ाम और मर्तबे की बुलंदी देता है। और इन्हें ताक़त-ओ-क़ुदरत देता है। इसका ये मतलब है।
اَنَّ اللّٰهَ عَلٰى كُلِّ شَیْءٍ قَدِیْرٌ
आयत का हिंदी तर्जुमा: ‘बेशक! अल्लाह हर शय पर क़ादिर है।’
वो जिसे मक़ाम-ओ-मर्तबा देना चाहे दे सकता है।
ध्यान देने योग्य बात: किसी मुसलमान पर शिर्क का इल्ज़ाम लगाना। किसी मुसलमान को मुशरिक कहना। जब कि वो मुशरिक नहीं मुसलमान है। तो उस पर ऐसा इल्ज़ाम लगाने वाला ही इस्लाम से बाहर है।
तफ़्सीर इब्ने कसीर में हदीस-ए-पाक है। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया- एक शख़्स क़ुरआन पढ़ता होगा। इस्लाम पर अमल करने वाला होगा। मगर वो क़ुरआन और इस्लाम दोनों से दूर हो जाएगा। सहाबा ने पूछा या रसुल्लाह! ऐसा क्यों होगा? हुज़ूर ने फरमाया ये अपने पड़ोसी मुसलमानों पर शिर्क का इल्ज़ाम लगाएगा। फिर सहाबा इकराम ने पूछा- मुशरिक कौन होगा? आपने फ़रमाया ये इल्ज़ाम लगाने वाला ख़ुद दायरे इस्लाम से बाहर होगा।
क्योंकि मुसलमान शिर्क से बरी है। बुख़ारी शरीफ में भी हदीस है । की मेरी उम्मत का मुसलमान शिर्क में मुब्तिला नही होगा।
وَاللہُ اَعْلَم وَ رَسُوْلُہٗ اَعْلَم صلَّی اللہ علیہ واٰلہٖ وسلَّم