मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा साहब (Sibtain Raza Khan) का जन्म 22 जमादी-उल-अव्वल 1346 हिजरी मुताबिक़ 11 नवंबर 1927 को यूपी के ज़िला बरेली में मुफ़्ती हसनैन रज़ा खान क़ादरी (जो की बेटे हैं उस्ताद-ए-ज़मन हसन रज़ा खान के) के घर हुआ था।
आपको शुरूआती तालीम आपके वालिद मुफ़्ती हसनैन साहब ने ही घर पर दी। हुज़ूर अमीने शरियत ने हुज़ूर मुफ़्ती-ए-आज़म मुस्तफा रज़ा खान (Mustafa Raza Khan) से भी तालीम ली, आपने सय्यद शब्बीर अली रजवी से क़िरअत की तालीम ली और हाफ़िज़े क़ुरान हुए. इनके अलवा भी हज़रत ने दीगर बड़े आलिमों से तालीम हासिल की है. हज़रत ने आगे की तालीम मंज़रे इस्लाम (Manzare Islam), अलीगढ़ मुस्लिम विश्विधालय (Aligarh Muslim University) से ली.
आगे चलकर आप मज़हर-ए-इस्लाम (Mazhar-E-Islam) में मुदर्रिस बने, फिर मदरसा इशाअतुल हक़ नैनीताल में, जामिया अरबिया नागपुर में, फिर मदरसा फैज़ुल इस्लाम में मुदर्रिस रहे.
साल 1963 में हुज़ूर अमीने शरियत (Ameene Shariyat) छत्तीसगढ़ के कांकेर ज़िले में तशरीफ़ ले गये, वहां उन्होंने जामा मस्जिद के बराबर में क़याम फरमाया और वहीँ रहकर दीन की खिदमत को अंजाम देते रहे. हुज़ूर अमीने शरियत बेहद सादगी पसंद आलिम थे, हमेशा बस, ट्रेन और रिक्शा से सफ़र करते. ग़रीब हो या अमीर सबके साथ एक ही तरह का बर्ताव किया करते थे.
हुज़ूर अमीने शरियत (Ameene Shariyat) ने 6 मर्तबा हज की ज़ियारत की, और 6 ही मर्तबा आपने इराक के शहर बग़दाद की ज़ियारत की.
आपकी यूँ तो ढेरों करामातें हैं, लेकिन मैं उनमें से आपके सामने एक करामत पेश करना चाहूंगी, अल्लामा अशरफ रज़ा सिब्तैनी के मुताबिक़, एक सख्श हुज़ूर अमीने शरियत की वारगाह में हाज़िर हुआ, उसे कई साल से कोई औलाद नहीं थी, बहुत से डॉक्टर, हकीम को दिखाया कुछ फायदा हासिल न हुआ, हुज़ूर अमीन-ए-शरियत की दुआ और ताबीज़ से उस सख्श के घर औलाद की आमद हुई.
हुज़ूर अमीने शरियत (Ameene Shariyat) की निजी जिंदगी देखी जाए तो 7 मार्च 1957 को आपका निकाह मुफ़्ती अब्दुर रशीद की बेटी से हुआ. हुज़ूर अमीने शरियत के चार लड़के और तीन लड़कियां हैं, 2 लड़कों की बचपन में ही मौत हो गयी थी.
हुज़ूर अमीने शरियत मुफ़्ती-ए-आज़म मुस्तफ़ा रज़ा खान (Mufti Azam Mustafa Raza Khan) मुरीद और ख़लीफ़ा हैं. आपने कई रिसाले और किताबें लिखी जिनमें से चंद ये हैं.
- -लाउडस्पीकर
- -आईना ए क़यामत के सर्क़ा की पुर असर दास्तान
- -टीवी के मुज़िर असरात
- -कायनात का दूल्हा
- -मरासिम मुहर्रम और मुसलमान
- -नमाज़ पढ़ने से क्या होता है?
आपकी वफात 9 नवम्बर 2015 को हुई, हर साल 26 मुहर्रम को आपका उर्स मनाया जाता है, आपका मज़ार पाक बरेली शरीफ में है.