रद्दे सुलहकुल्लियत, सुलहकुल्ली (Secular) किसे कहते हैं?

सबसे पहले तो ये जान लेते हैं की सुलहकुल्ली (Secular) कहते किसे हैं और यह कितने प्रकार के होते हैं? आमतौर पर मुआशरे में दो तरह के सुलहकुल्ली (Secular) पाए जाते हैं।

  1. ऐतेक़ादी 
  2. अमली 

ऐतेक़ादी : ऐतेक़ादी सुलहकुल्ली उन्हें कहते हैं जो ये मानें या कहें की हर एक बातिल फ़िरक़ा हक़ पर है, या कम से कम एक बातिल फ़िरक़े को हक़ पर जानें, मसलन वो ये कहे की सुन्नी भी हक़ पर हैं साथ ही वहाबी-देवबंदी भी हक़ पर हैं। तो इस तरह के सुलहकुल्ली को ऐतेक़ादी सुलहकुल्ली कहते हैं।

अमली : अमली सुलह कुल्ली उसे हैं, जो अहले सुन्नत को तो हक़ पर जाने और जितने भी बातिल फिरके हैं उनको झूठे जानें, लेकिन उनसे दोस्ती करे, उनके साथ उठे बैठे, खाये पिए, उनकी शादियों में शिरकत करे।

दोनों ही तरह के सुलहकुल्लियों से मेलजोल, दोस्ती, सम्बन्ध रखना सख्त मना है। बिल-ख़ुसूस ऐतेक़ादी सुलहकुल्लियों के साथ किसी भी तरह का कोई भी सम्बन्ध रखना हराम है।

अब आगे बढ़ते हैं, उलेमा-ए-हक़ को अल्लाह ने मक़ाम अता किया है, लेकिन जिसको अल्लाह मक़ाम देता है उनकी ज़िम्मेदारियां भी होती हैं। 

सुलहकुल्ली नबी का नहीं सुन्नियों,
सुन्नी मुस्लिम है सच्चा नबी के लिए।

-ताजुश्शरिया अख्तर रज़ा खान

आक़ा करीम सल्लललाहोअलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया- “जब फ़ितने ज़ाहिर हों, बिद्दतें पैदा हों तो आलिम के लिए फ़र्ज़-ओ-वाजिब है की वो अपने इल्म को ज़ाहिर करे। अगर नहीं करता है तो फ़रमाया की उसपे अल्लाह क लानत, फरिश्तों की लानत और सारे लोगों की लानत। अल्लाह ना उसकी फ़र्ज़ नमाज़ क़ुबूल करेगा और ना ही नफ़्ल क़ुबूल करेगा। 

अगर मिंबर-ए-रसूल से कोई सुन्नी आलिम अगर किसी बदअक़ीदा ग़ैर-मुक़ल्लिद का रद्द करे तो ज़ुबान मत खोलियेगा, ये मत कहियेगा की ये मिंबर पे बैठकर ग़ीबत करते हैं। किसी राफ़ज़ी, किसी सुलहकुल्ली, या किसी बदअक़ीदे का रद्द करें तो तो ये जान कर उसको क़ुबूल करियेगा की उसको अल्लाह की लानत से बचना है, फरिश्तों और लोगों की लानत से बचना है। ये भी तो चाहते हैं की इनकी भी नफ़्ल और फ़र्ज़ नमाज़ क़ुबूल हो जाए। किसी सुलहकुल्ली का रद्द करना शरीयत का तक़ाज़ा है 

और आजकल वह भी सुलहकुल्ली पाए जाते हैं जो हज़रत अमीर माविया रदियल्लाहु तआला अन्हु के खिलाफ ज़बाँ-दराज़ करते हैं।

इमाम शिहाबुद्दीन ख़फ़ाजी फरमाते हैं:

ومن يكن يطعن فى معاوية”​

“فذاك كلب من كلاب الهاويه

तर्जमा: “जो अमीरे माविया के खिलाफ भौंकता है, वह जहन्नुम के कुत्तों में से एक कुत्ता है”

और आजकल इस तरह के कुत्तों की भी भरमार है, ऐसे कुत्तों की तक़रीरें सुनने से बचना चाहिए। उनकी तक़रीरें सुनने की इजाज़त नहीं।

सरकार-ए-दो आलम हुज़ूरे कायनात, फखरे मौजूदात सल्लललाहो अलैहिवसल्लम फरमाते हैं- ‘ग़ौर करो दीन सीख किस से रहे हो’

अगर आप किसी बद-अक़ीदे सुलहकुल्ली से दीन सीखोगे उसकी यूट्यूब वीडियो, उसकी तक़रीरें सुनोगे तो आपका दिमाग़-ओ-ज़हन खराब होगा। 

आज ऐसी ढेरों तहरीकें चल रही हैं, और उन तहरीकों के तक़रीरें करने वालों की तकरीरें भी खूब छा रही हैं।  लोग कहते हैं उनको बुलाइये बहुत अच्छी तक़रीर करते हैं, तो आप इस बात का ख़ास ख़याल रखें, इन बदअक़ीदों सुलह कुल्लियों की तक़रीर सुनने की कतई ज़रुरत नहीं है. इससे बेहतर है आप पास ही की अपनी मस्जिद में जाएँ और इमाम से बहार-ए-शरीयत सुनाने की गुज़ारिश करें। आप बहार-ए-शरीयत सुनेंगे तो इंशा अल्लाह आपकी ज़िंदगी में भी बहार आएगी।

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