नबी-ए-करीम ﷺ नूर हैं या नहीं? किस्त-1

दौरे हाज़िर में नबी-ए-करीम ﷺ सिर्फ बशर हैं ऐसा अकीदा रखने वाले तमाम फिरको का रद्द कुरान और हदीस इज्मा-ए-उम्मत से करते चलेंगे अल्लाह उन लोगों को सुधार दे या फिर इस दुनिया से गुज़ार दे जिन लोगों ने हमारे प्यारे आका हुज़ूर ﷺ की ज़ात-ए-अक्दस को अपने झगड़ों का मौज़ू बनाया हुआ है उनकी पूरी ज़िंदगी इसी में बीती जा रही है कि सरकार ﷺ नूर हैं या बशर उनकी مبلغ علم (इल्म की हैसियत) का आलम यह है की नूर हैं या बशर यह सवाल ही जहालत है।

क्योंकि नूर का बरअक़्स (On the contrary) बशर नहीं होता नूर का बरअक़्स ज़ुल्मत-ओ- तारीकी (अंधेरा) होता है।
कुरान-ए-मजीद में अल्लाह ने फरमाया।–

ٱللَّهُ وَلِىُّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ يُخْرِجُهُم مِّنَ ٱلظُّلُمَـٰتِ إِلَى ٱلنُّورِ وَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْۤا اَوْلِیٰٓـٴُـھُمُ الطَّاغُوْتُۙ- یُخْرِجُوْنَهُمْ مِّنَ النُّوْرِ اِلَى الظُّلُمٰتِؕ

तर्जुमा: अल्लाह मुसलमानों का वली है उन्हें अंधेरों से नूर की तरफ निकालता है और काफिरों का शैतान वली है वह इन्हें नूर से ज़ुल्मत (अँधेरे) की तरफ निकालता है।“ (सूरह: अल बकराह आयत 257)

तो कुरान-ए-करीम ने दोनों तसव्वुर दे दिए के नूर का बरअक़्स बशर नहीं ज़ुल्मत (अंधेरा) होता है और ज़ुल्मत का नूर तो यहां पर पता चला कि नूर और बशर का तो कोई झगड़ा ही नहीं है।

बात को और आसान करने के लिए चंद मिसाल जैसे पानी का बरअक़्स आग होती है अगर आप किसी से कहें कि आप मीठा लेंगे या सफेद तो यहां आपकी अक्ल कहेगी यह क्या बात हुईं यहां पर मीठे की सफेद से क्या तुलना? अगर यहां पर सफेद या काला कहें तो बात समझ आती है।

इसी तरह नूर की ज़िद अंधेरा है और बशर की ज़िद फरिश्ता नूर और बशर का टॉपिक रखना अपने आप में खुद एक बहुत बड़ी जहालत है।

जब एक ही हस्ती के अंदर नूर और बशर दोनों जमा हो सकते हैं तो झगड़ा किस बात का है?
अगर आपको हुज़ूर ﷺ की ज़ात पर झगड़ा करने का शौक ही है और आपने अपने ईमान को बर्बाद करने की ठान ही ली है तो यहां पर टॉपिक लिखिए हुज़ूर नूर हैं या ज़ुल्मत माज़अल्लाह इस तरह की बात करने वाला तुरंत काफिर हो जाएगा। नूर और बशर यकजा यानी (एक ही जगह) जमा हो सकते हैं ।

अब हम इसको एक और उदहारण के साथ समझते हैं। हजरत जिब्राईल को जब अल्लाह ने हजरत मरियम की तरफ फूंक मारने के लिए भेजा आप जानते हैं कि हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम नूरी फरिश्ते हैं और तमाम नूरियों के सरदार लेकिन आप नूर के साथ-साथ एक बशरी पैकर भी बनें।

कुरान खुद इसकी वजाहत करता है।-

(فَاَرْسَلْنَاۤ اِلَیْهَا رُوْحَنَا فَتَمَثَّلَ لَهَا بَشَرًا سَوِیًّا)

तर्जुमा: “हमने अपनी रूह यानी (रूहुल अमीन) जिब्राईल को भेजा तो वह उसके सामने एक तंदुरुस्त आदमी की सूरत बन गया।” (सूरह अल मरियम आयत 17)

यहां पर कुरान से खुद पता चला कि एक नूरी फरिश्ता और बशर दोनों यकजा हो गये यहां पर हज़रत जिब्राईल नूर भी हैं और बशर भी हैं।

यहां पर पता यह चला के नूर और बशर में तो कोई झगड़ा ही नहीं है और दूसरी बात कुरान से यह भी साबित हो गई कि एक ही हस्ती के अंदर नूर और बशर दोनों जमा हो सकते हैं।

और हमारा अकीदा भी यही है कि नबी करीम ﷺ की ज़ात में नूरानीयत भी है और बशरीयत भी है। अगर नूरानीयत ना हो तो आलम-ए-नूर को फैज़ कैसे मिलेगा क्योंकि हुज़ूर तो आलम-ए-नूर को भी फैज़ देने वाले हैं जब फरिश्ते फ़ैज़ लेते हैं तो वहां ज़रिया आपकी नूरानीयत बनती है और जब बंदे और बशर फैज़ लेते हैं तो वहां पर ज़रिया आपकी बशरीयत बनती है।

नबी पाक सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ﷺ की बशरीयत का इंकार करने वाला काफिर है।

अब यहां पर कुछ अक्ल के अंधे यह सवाल करेंगे कि दोनों बातें कैसे मानी जा सकती यह तो फिर बिल्कुल इस तरह की बात हो गई कि एक शख्स कहे कि मैं इस खातून का शौहर हूं और आप का बाप अब आप झगड़ा करें कि एक बात माने या तो शौहर मानें या फिर बाप तो थोड़ा अक्ल से काम लो और दीन पढ़ो उसके बाद समझो।

तो यहां पर बात यह क्लियर हो गई कि बशर तो हुज़ूर को सब मानते हैं अगर कोई बशरीयत का इंकार करे तो वो काफिर है। अब मसला सिर्फ एक रह गया हमने कहा सरकार नूर भी हैं और इन्होंने कहा नूर नहीं है।

अब कुरान और हदीस से हम सिर्फ यह दिखाएंगे कि सरकार नूर भी हैं और जो सरकार को नूर नहीं मानते वह कुरान और हदीस से इस बात को साबित करें कि नूर नहीं है।

अब अगर कोई आयत पेश करें अल्लाह कुरान में इरशाद फरमाया है।-

“قُلۡ إِنَّمَآ أَنَا۠ بَشَرٞ مِّثۡلُكُمۡ”

(तर्जुमा: “ऐ महबूब तुम फरमा दो मैं तुम्हारी तरह बशर हूं” (सूरह: अल कहफ़ आयत 110)

तो हमारा इस आयत पर ईमान हैं इस आयत पर तो कोई झगड़ा ही नहीं हुज़ूर ﷺ बशर हैं यह तो हम भी मानते हैं अब अगर हुज़ूर की बशरीयत पर हदीस पेश करो तो हदीस पेश करने की इजाज़त ही नहीं है क्योंकि उसको हम भी मानते हैं।

अब अगर कोई दलील पेश करनी है तो सिर्फ इतनी की हुज़ूर ﷺ नूर नहीं है इस पर ‘الحمد’ से लेकर ‘والناس’ तक कोई कुरान की एक आयत दिखाओ जिस आयत में यह आया हो कि सरकार ﷺ नूर नहीं है और यह तुम कयामत तक साबित नहीं कर पाओगे क्योंकि पूरे कुरान में एक भी आयत ऐसी नहीं है जिसमें यह साबित होता हो कि हुज़ूर नूर नहीं ऐसी कोई हदीस नहीं जिसमें यह आया हो कि सरकार ﷺ नूर नहीं हम नबी पाक को बशर भी मानते हैं।

और नूर भी मानते हैं। जो नूर और बशर दोनों को माने उसका तो कोई झगड़ा ही नहीं जो कहें नबी ﷺ नूर नहीं है सिर्फ बशर हैं झगड़ा तो असल इसने डाला है। इंशाल्लाह दो किस्त में नबी करीम ﷺ नूर भी हैं इस पर हम कुरान और हदीस की रोशनी में साबित करेंगे तब तक के लिए आप इसको गोरो फिक्र के साथ पढ़ें और दूसरे लोगों तक भी इसको ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें।

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