जो तावीज़ात क़ुरान व हदीस की रौशनी और उसूल पर बने हों उसको पहनना और इस्तेमाल में रखना बिल्कुल जायज़ है, और ये हमारा या किसी आलिम की ही सुन्नत नही बल्कि सहाबा-ए-इकराम से साबित है और उनकी सुन्नत में से है।
आईये सबसे पहले तावीज़ पर क़ुरान क्या कहता है वो देखते हैं।
‘और हम क़ुरान में उतारते हैं वो चीज़ जो मोमिनों के लिए (रूहानी व जिस्मानी) अमराज़ से शिफ़ा है।’
पारह 15, सूरह बनी इसराइल, आयत 82
यानी ये क़ुरान शरीफ़ से ही साबित हो गया है कि क़ुरान की आयतों से शिफ़ा हासिल करना जायज़ है।
आईये नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरमान की तरफ चलते हैं।
हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अम्र रदी अल्लाहु अन्हु बयान करते है के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जब तुम में से कोई नींद में डर जाता हो, तो वो ये कलिमात कहे-
أعُوذُ بِكَلِمَاتِ اللَّهِ التَّامَّاتِ مِنْ غَضَبِهِ وَعِقَابِهِ وَشَرٌ عِبَادِهِ, وَمِنْ هَمَزَاتِالشَّيَاطِينِ وَأَنْ يَحْضُرُونِ
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र रदियल्लाहु अन्हु अपने समझदार बच्चों को ये कलीमात सिखाते और नासमझ बच्चों के गले में कलिमात लिख कर लटका देते थे।
सुनन अबू दाऊद, जिल्द 4, सफा 141
सुनन तिर्मिज़ी शरीफ़, जिल्द 02, सफ़ह 972,
नोट- यह तर्जुमा खुद वहाबी लोगों की किताब में भी मिल जायेगा।
अब अगर गले में तावीज़ (Taweez) लटकाना शिर्क है और यह हदीस हैं तो क्या इस हदीस पर हजरत अब्दुल्लाह इब्ने उम्र की नज़र नहीं गई क्या हजरत अब्दुल्लाह इब्ने उमर ने अपने बच्चों के गले में ताबीज़ लटकाकर शिर्क किया? माज़अल्लाह!
जबकि एक और हदीस-ए-पाक में अल्लाह के रसूल ने फरमाया-
‘मेरे सहाबा सितारों की मानिंद है तुम इनकी पैरवी करो तुम इनमें से किसी एक की भी पैरवी करोगे तो हिदायत पाओगे।’
मिशकत अल-मसाबीह हदीस नंबर: 5964
आईये अब देखें बुज़ुर्गाने दीन का इस पर क्या क़ौल है?
10वीं सदी के मुजद्दिद हजरत मौला अली कारी जो तमाम मज़हब के मुसल्लम बुज़ुर्ग हैं जिनको वहाबी, देवबंदी तमाम फिरका-ए-बातिला अपना पेशवा बुज़ुर्ग मानते हैं, वो अल मिरकात मैं तहरीर फरमाते हैं-
’’و ھٰذا أصل في تعلیق التعویذات التي فیھا أسماء اللہ تعالٰی۔
इस कौल से यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि जो तावीज़ात अस्मा-ए-इलाही और कलमात मुबारका पर मुस्तमिल हों। और वो अपने अंदर एक रूहानी असर रखते हैं और इससे मरीजों का इलाज करना इलाज-ए-कुरानी ही है।
हज़रते इमामे शाफ़ई رحمة الله عليه के नज़दीक़
अल्लामा ज़रकशी رحمة الله عليه लिखते हैं कि “हज़रते इमामे शाफ़ई رحمة الله عليه की ख़िदमत में एक शख़्स आया और उसने आशोब-ए-चश्म (आँखों में सूजन आने और लाल हो जाने की स्थिति, आँख दुखना) की शिकायत की तो हज़रते इमाम शाफ़ई رحمة الله عليه ने एक तावीज़ (Taweez) लिख कर दिया और उस शख़्स ने उस तावीज़ को गले मे डाला तो उसको शिफ़ा मिल गयी”
अल बुरहानुल उलूमुल क़ुरान , जिल्द 01, सफ़ह 434
ये हमारे अकाबिर उलमा-ए-इकराम का मौक़िफ़ है जो तावीज़ (Taweez) को लिखने और पहनने को जायज़ फ़रमाते हैं।
हां ग़ैरमुस्लिमों के पास जाना और उनसे ताविज़ात वग़ैरह करवाना नाजयज़ और कुफ्ऱ व शिर्क भी है, लिहाज़ा जादूगर और कुफ़्फ़ार के पास हरगिज़ ना जाएं।