क्या हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में भी वहाबी थे?

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में भी कुछ ऐसे थे जो आका करीम पर ईमान लाने का सिर्फ ढिंढोरा पीटते थे। मगर हक़ीक़त में ईमान नहीं था। उस ज़माने में भी हुज़ूर से इख्तिलाफ करते थे!

क़ुरान ने इसीलिए कहा-

مِنَ النَّاسِ مَنْ یَّقُوْلُ اٰمَنَّا بِاللّٰهِ وَ بِالْیَوْمِ الْاٰخِرِ وَ مَا هُمْ بِمُؤْمِنِیْنَۘ

आयत का हिंदी तर्जुमा: “और कुछ लोग कहते हैं कि हम अल्लाह और पिछले दिन पर ईमान लाए और वो ईमान वाले नहीं”

आइए हदीस-ए-पाक की रोशनी में देखते हैं वो कौन लोग हैं जो ईमान वाले नहीं उनकी पहचान क्या है?

عن جابر بن عبد الله ، قال: كان رسول الله صلى الله عليه وسلم بالجعرانة وهو يقسم التبر والغنائم، وهو في حجر بلال، فقال رجل: اعدل يا محمد فإنك لم تعدل، فقال:” ويلك ومن يعدل بعدي إذا لم اعدل”، فقال عمر: دعني يا رسول الله حتى اضرب عنق هذا المنافق، فقال رسول الله صلى الله عليه وسلم:”إن هذا في اصحاب، او اصيحاب له يقرءون القرآن لا يجاوز تراقيهم، يمرقون من الدين كما يمرق السهم من الرمية

हदीस का हिंदी तर्जुमा: “नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक़ाम-ए-ज़ारान में तशरीफ फरमा थे! और आप हज़रत बिलाल रज़ी अल्लाहु ताला अन्हु की झोली में से सोना और चांदी माल-ए-ग़नीमत लोगों में तक्सीम फरमा रहे थे। तो एक शख्स पीछे से आया जिसका नाम ‘जुल्खुवैसरा’ तमीमी था। उसने कहा- ऐ मोहम्मद माल बांटने में ज़रा इंसाफ से काम लो तुमने इंसाफ से काम नहीं लिया। हुज़ूर ने पीछे पलट कर देखा और जलाल में आए और कहा- ऐ ‘जुल्खुवैसरा’ तमीमी, तेरा बुरा हो!

सुन मुझसे ज़्यादा भी कोई तुझे इंसाफ करने वाला मिलेगा अगर मैं इंसाफ नहीं करूंगा तो फिर मेरे बाद इंसाफ कौन करेगा? हज़रत उमर फारूक-ए-आज़म रज़ी अल्लाहु ताला अन्हु मौजूद थे। और अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह अगर इजाज़त मिल जाए तो इसकी गर्दन मार दूं! हुज़ूर ने फरमाया उमर कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है बस इसको देख लो।”

हज़रत इमामे मुस्लिम ने अपनी किताब मुस्लिम शरीफ में इस हदीस को नकल किया है। इमाम-ए-नोवी उसकी अलामत बयान करते हैं। हाशिए में और फरमाते हैं जो वो आया था उसकी अलामत यह है-

غائر العينين، مشرف الوجنتين، ناشز الجبهة، كث اللحية، محلوق الرأس الى اخر العباره

हदीस का हिंदी तर्जुमा: “उसकी आंखें धसी हुई थी नुमाया गाल फैला हुआ माथा और घनी दाढ़ी और गंजा सर और उसका पैजामा चढ़ा हुआ था। और इसकी नस्ल से एक कौम पैदा होगी वो क़ुरान पड़ेंगे लेकिन उनके हलक से नीचे नहीं उतरेगा। और वो दीन से इस तरह बाहर होंगे जिस तरह शिकार तीर से निकल जाता है।”

यही वजह है कि आज कोई मदनी लहज़ा पड़ता है कोई अब्दुल रहमान अल सुदैस को सुनता है लोग बड़ा पसंद करते हैं मगर याद रखो उनके हलक से नीचे नहीं उतरेगा फरमाया ज़ुबानें तो अच्छी होंगी मगर दिल से नहीं होगा और आगे वज़ह (क्लियर) कर दिया वो दीन से ऐसे बाहर होंगे जैसे तीर कमान से!

आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक और हदीस-ए-पाक सुनो वो (वहाबी) किस की औलाद हैं किसकी नस्ल हैं हुज़ूर ने पहले ही क्लियर कर दिया है।

बुख़ारी शरीफ की हदीस-ए-पाक है:

‏عن ابن عمر رضي الله عنه عن النبي صلى الله عليه وسلم قال ” اللهم بارك لنا في شامنا ، اللهم بارك لنا في يمننا، فقالوا: وفي نجدنا يا رسول الله، قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: اللهم بارك لنا في شامنا، اللهم بارك لنا في يمننا، فقال الناس: وفي نجدنا يا رسول الله؟ قال ابن عمر: أظن أنه قال في المرة الثالثة: الزلازل والفتن هناك: وهناك يطلع قرن الشيطان”

‘हज़रत अब्दुल्ला बिन उमर रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है के रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक दिन दुआ कर रहे थे। ऐ अल्लाह हमारे शाम में बरकत अता फरमा ऐ अल्लाह हमारे यमन में बरकत अता फरमा कुछ सहाबी-ए-रसुल नज्द (रियाद) के रहने वाले थे। उन्होंने कहा या रसूल अल्लाह हमारे नज्द के लिए दुआ फरमाइए। आप ने फरमाया ऐ अल्लाह हमारे शाम में बरकत अता फरमा और हमारे यमन में बरकत अता फरमा उन्होंने फिर अर्ज़ किया हमारे नज्द के लिए दुआ फरमाइए। फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- वहां ज़लज़ले और फितने होंगे और उसी से शैतान की सींग निकलेंगे। या’नी शैतान का लश्कर और उसके मददगार निकलेंगे।’

फितना कौन सा पैदा हुआ? ‘अब्दुल वहाब नज्दी’ नाम का फितना पैदा हुआ। वहीं से ये नस्लें आज भी चल और पल रही हैं। आज भी ये लोग नज्दियों के नाम से जाने जाते हैं और नज्द का नाम इन्होंने बदल कर रियाद रख लिया। या’नी गोबर पर हलवा रख दिया लेकिन इनके बदलने से कुछ नहीं हुआ ये आज भी नज्दियों के नाम से जाने और पहचाने जाते हैं।

और सरकार ने यमन और शाम के लिए दुआ इसलिए की थी। क्योंकि मुल्क-ए-शाम में नबियों के मज़ार हैं। और यमन में हजरत ओवैस-ए-करनी रदियल्लाहु अन्हु रहते हैं।

आला हज़रत से सवाल हुआ क्या खुलाफा-ए-अरबा के ज़माने में वहाबी थे?

आप ने जवाब दिया और फरमाया हां, हां थे! ये वही फिरका है जिन्होंने मौला-ए-क़ायनात रदियल्लाहु अन्हु के ज़माने में इन्होंने फितना मचाया तो हजरत इब्ने अब्बास रदियल्लाहु अन्हु ने इनसे मुनाज़रा किया और कहा की हज़रत अली से कि मुझे इजाज़त दो मैं इन से मुनाज़रा करूंगा उनके पास गए और जाने के बाद उनसे पूछा कि आप हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु से चिढ़ते क्यों हो?

ख़वारिज बोले हमें तीन ऐतराज़ हैं। इब्ने अब्बास रदियल्लाहु अन्हु ने कहा बयान करो! पहला ऐतराज़ ये अली ने क़ुरान के ख़िलाफ़ किया है। उन्होंने अल्लाह के हुक्म के मुक़ाबले में इंसान को मुंसिफ (फैसल) बनाया है। और अल्लाह क़ुरान में फरमाता है:

إِنِ الْحُكْمُ إِلَّا لِلَّـهِ  

आयत का हिंदी तर्जुमा: ‘फैसला सिर्फ अल्लाह के लिए है।’

इसी तरह के तीन ऐतराज़ इन्होंने किये और तफसील के लिए अल मनफूज़ और अल-मुस्तद्रक का मूताला करें।

हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहु अन्हु ने फरमाया अगर मैं अल्लाह की किताब से कुछ ऐसी आयतें बताऊं जो तुम्हारे मौकीफ की तरदीद करें। तो तुम मेरी बात मानोगे? आपने क़ुरान की आयत पेश की ओर ये वहाबी आज भी क़ुरान से इसी तरह की दलीलें लाते हैं। और कहते हैं सरकार हमारी तरह बशर हैं।

 और क़ुरान की दूसरी आयतो को छोड़ते हैं और आधा-अधूरा पढ़ते हैं/पढ़ाते हैं।

وَإِنْ خِفْتُمْ شِقَاقَ بَيْنِهِمَا فَابْعَثُوا حَكَمًا مِّنْ أَهْلِهِ وَحَكَمًا مِّنْ أَهْلِهَا

आयत का हिंदी तर्जुमा: ‘मैं मियां बीवी के दरमियान आपस की अनबन का खौफ हो तो एक मुंसिफ (फैसल) मर्द वालों में से एक औरत के घर वालों में से करो।’

जब ये आयत आपने पढ़ी तो समझ आ गया कि हम ग़लत कह रहे थे। अल्लाह के लिए है मगर अल्लाह का हाकिम (फैसल) होना ज़ाती है। और अल्लाह ही के क़ुरान में फरमा रहा कि अगर झगड़ा हो जाए तो अपना एक फैसल भेजो।

अल मुख़्तसर जब आपका मुनाज़रा हुआ तो आपको कामयाबी मिली और 6000 में से 2000 ने दोबारा कलमा पढ़ कर सुन्नीयत को कुबूल कर लिया। और जो बचे थे उनसे जंग फरमाई और सब को हलाक कर दिया।

सुन्नियों ये वही हैं जिनकी बशारत हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दी है। अहदीस-ए-करीमा से और उलमा-ए-अहले सुन्नत ने कहा है इनसे दूर रहो तो इनसे दूर ही रहना और बस यही कहना-

दुश्मनें अह़मद पे शिद्दत कीजिये

मुल्ह़िदो की क्या मुरुव्वत कीजिये

ग़ैज़ में जल जाएं बे दीनो के दिल

“या रसूलल्लाह” की कसरत कीजिये

-इमाम अहमद रज़ा खान

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