उमुरे इस्लाम (इस्लामी मामले) मे कुछ फराईज़ व वाजिबात हैं जिनका बजा लाना (अंजाम देना) लाज़िम व ज़रूरी है इन उमूर में से क़ुर्बानी भी है जो वाज़िब (अनिवार्य) है जिसके पास अय्यामें क़ुरबानी मे मिक़दारे निसाब माल हो ख़्वाह वह माल रुपये व नक़दी सोना चाँदी या काश्त (किसानी) वगैराह की शक्ल में हो उन पर क़ुरबानी वाजिब (अनिवार्य) है. अल्लाह तआला ने नज़दीक क़ुरबानी के दिनों में जानवर का खून बहाने अमल बहुत ज्यादा महबूब व पसन्दीदा है.
बारगाहे खुदाबन्दी में अगरचे क़ुरबानी का गोश्त नही पहुँचता मगर उस से बन्दे को जो तक़वा हासिल होता है वह तक़वा पहुँचता है बन्दे की यही सबसे बड़ी सआदत व फ़ीरोज़ बख्ती है कि उसका कोई नेक काम खुदा की बारगाह में पहुँचे और वह कुबूल हो जाए!
एक हदीस पाक का मफ़हूम है कि ज़ैद बिन अकरम रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं “रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से पूछा या रसूलुल्लाह यह क़ुरबानियाँ क्या हैं? फ़रमाया! तुम्हारे बाप हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की सुन्नत! पूछा, उसमें हमको क्या मिलेगा? फरमाया! उसके हर बाल के बराबर नेकी लोगो ने अर्ज़ किया और उनके बारे में क्या इरशाद फ़रमाया उसके भी हर बाल के बराबर नेकी मिलेगी बाल से इशारा बकरी की तरफ था तो लोगो ने ऊन कह कर मेढ़े के बारे में पूछ लिया!
फैज़ाने आला हज़रत सफ़ह,635