सवाल: अज़ान में हुजूर नबी करीम ﷺ के इस्म ए गिरामी मोहम्मद ﷺ को सुनकर अपने अंगूठे चूम कर अपनी आंखों पर लगाना कैसा है ?
जवाब: जायज़ बा मुस्तहसन मोजिबे अज्र बा सवाब है और सरकारे दोजहां रहमते आलम ﷺ कि मोहब्बत की अलामत है।
सवाल: इसका क्या सबूत है ?
जवाब: अल्लामा इब्ने आबिदीन शामी رَحْمَۃُ اﷲِ تَعَالٰی عَلَیْہِ फरमाते हैं मुस्ताहब ये है के जब पहली शहादत सुने तो कहें
صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْکَ یَا رَسُوْلَ اللّٰہِ
और दूसरी सुने तो अपने दोनों अंगूठे को अपनी दोनों आंखों पर लगाने के बाद यह कहें
قَرَّتْ عَیْنِیْ بِکَ یَارَسُوْلَ اللّٰہِ
फिर यह कहें
اَللّٰھُمَّ مَتِّعْنِیْ بِالسَّمْعِ وَالْبَصَرِتو
हुज़ूर ﷺ जन्नत की तरफ उसके काइद होंगे जैसा के कंजूल इबाद और फतवा ए सूफिया में है और किताबुल फिरदौस में है जिसने अजान में
میںاَشْھَدُ اَنَّ مُحَمَّدًا رَّسُوْلُ اللّٰہِ
सुनने के बाद अपने दोनों हाथों को बोसा दिया तो जन्नत की सफो में उसका काइद और दाखिल करने वाला होगा।
सवाल: अंगूठे चूमने के बारे में अगर कोई वाकिया हो तो बता दें ?
जवाब: आला हज़रत इमाम ए अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान बरेली मुसनद उल फिरदोस के हवाले से फरमाते हैं हज़रत अबू बकर सिद्दीक से मरवी है कि जब आप मुअज़्ज़ीन को आशहदू अन्ना मुहम्मदन रसूलुल्लाह कहते सुना तो यही अल्फाज़ कहे और दोनों उंगलियों को पूरे जानिब ज़ेरे से चूम कर आँखों से लगाए।
इस पर नबी ﷺ ने फ़रमाया जो ऐसा करें जैसा के मेरे प्यारे ने किया उसके लिए मेरी शफ़ाअत हलाल हो जाये।
सवाल: अगर यह दलील ना होती तो क्या फिर भी ऐसा करना जाइज़ होता ?
जवाब: जी हां अगर इसके लिए कोई साफ दलील ना हो तो शरीयत की तरफ से इसकी कोई मुमानीयत ना होना ही इसके जायज होने के लिए काफी है क्योंकि हर चीजे असल के एतवार से जायज है जब तक के शरीयत मना ना कर दे यही वजह है कि अजान के अलावा मोहब्बत और ताज़ीम कि वजह से नबी करीम ﷺ नाम ए मुबारक सुनकर अंगूठे आंखों पर लगाना जायज बा मुस्तहसन है।
और यह मसला फिक्ह हनफी के अंदर साफ-साफ लिखा है तो लिहाजा गैर मुकल्लीद लोगों से दीन सीखने की जरूरत नहीं है।
फतवा रिजविया, 5/432