आइए हम आपको जनरल-ए-इस्लाम, मुहाफिज-ए-नामुस-ए-रिसालत इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी के किल्के रज़ा के कमालात दिखाएं. मुहाफिज-ए-नामुस-ए-रिसालत इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी जिन्होंने 1320 हिजरी में अल्लामा फजले रसूल बदायूँनी की गुस्ताख़ाने रसूल और बद-मजहबों और गुमराहीयो के रद्द-ए-वलीग़ पर एक अरबी तसनीफ जिसका नाम “अल मोतकद उल मुस्तनाद” की अरबी ज़ुबान में शराह लिखी जिसका नाम “उल मुस्तनाद अल मोतकद बिनिजातील अबद” तहरीर फरमाए.
1316 हिजरी में हरामैन-शरीफैन के मुफ्तीयान-ए-इकराम की खिदमत में भी पेश हुआ उस वक्त के 33 उलमा ने खूब गोर करने के बाद इनके कुफ्र का हुक्म सादिर किया इस तरह अल्लाह ने इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी के फतवे को उलमा-ए-मक्का और मदीना की ताईद और तौसीफ के फानुस से रोशन किया. इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी का ये कारनामा हुसामुल-हरामैन के नाम से पूरी दुनिया में चमक धमक रहा है.
जो आने वाले मुसलमानों के लिए एक मजबूत आईडेंटिफिकेशन है और उसके अलावा भी इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी ने बहुत सारी तसनीफ और बहुत से मकामो पर इन गुस्ताख़ाने रसूल का रद्द किया और अपने अल मनफूज़ के अंदर इनका रद्द करना फर्ज-ए-आज़म भी लिखा अल्लाह से दुआ है कि हम सबको मसलक-ए-आला हज़रत पर सख्ती से रहने की तौफीक अता फरमाए.
और बस यूं ही कहते रहे दुश्मन-ए-अहमद पे शिद्दत किजिए मुल्हिदों की किया मुर्व्वत किजिये. “शिर्क ठहरे जिस में तज़ीमे हबीब उस बूरे मज़हब पे लनात किजिये ग़ैज़ में जल जाएं बे दीनो के दिल “या रसूलल्लाह” की कसरत कीजिये.”