जब उम्मत-ए-मुस्लिमा का सफीना हिचकोले खा रहा था उस वक्त मेरे इमाम ने अपनी उम्र के 13वें साल ही से नामूस-ए-रिसालत की हिफाज़त के लिए एक जनरल बनकर मिल्लत-ए-इस्लामिया के ईमान को बचाया वह रोहिलखंड की सैकड़ों एकड़ की ज़मीन का मालिक रियासते रामपुर के क़ाज़ी का दामाद अहले सुन्नत के दिलों पर राज करने वाला मुहाफिज नामुस-ए-रिसालत इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी है।
तोहीन-ए-रिसालत के कवीह जुर्म की एक अपनी तारीख़ है।जिसके सिया बाव का पहला चैप्टर ‘शैतान’ लाईन है।
अल्लाह तआला ने तमाम फरिश्तों को जब हुक्म दिया के आदम की पेशानी (माथा) में जो नूर-ए-मुस्तफा ﷺ है उसको ताज़ी-मन सजदा करो सब ने सजदा किया मगर शैतान अकड़ गया बारगाह-ए-कौनेन में सबसे पहली गुस्ताखी का जुर्म इब्लीस पर आईद किया।
और एक तोहीन का जुर्म अबू लहब ने किया अल्लाह तआला ने फौरन गिरफ्त फरमाई और उसकी मज़्म्मत में सूरह लहब नाज़िल की।
और अबू लहब के बेटे ने जब रसूल अल्लाह को अज़ीयत दी नबी-ए-करीम ने इरशाद फरमाया ऐ अल्लाह तू अपने शेरों में से एक शेर उत्वा पर मुसल्लत फरमा दे। बस फैसला नाफिज़ हो गया और रात के वक्त ऊंची चट्टान पर एक काफिले में उत्वा आराम कर रहा था आधी रात शेर ने उत्वा को आकर हलाक कर दिया।
हर दौर में वक्त की नज़ाकत के मुताबिक अल्लाह के शेर उलमा-ए-इकराम ने अपने अपने हिस्से की शम्मा-ए-रिसालत जलाए रखीं और गुस्ताखाने रसूल और बातिल फिरको से मिल्लत-ए-इस्लामिया को बचाए रखा।
बरेली में अल्लाह का एक शेर अहमद रज़ा खान बरेलवी पैदा हुआ दौर-ए-नबवी से चले आए इस निज़ाम-ए-मज़हबी मुहाफिज़ ए नामुस ए रिसालत की सफो में अपने आप को शामिल किया। और इसी निज़ामी इलाही को 19वीं सदी में अपने खून से सींचा और औज-ए-सुरय्या तक पहुंचा दिया।
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