आला हज़रत का नामुस-ए-रिसालत पर पहरा। (पार्ट-2)

इससे पहले आप लोग आला हज़रत की नामूस-ए-रिसालत का एक बाक़िया पढ़ चुके हैं. ये एक और दूसरा बाक़िया है. यदि अभी तक वो आपने नहीं पढ़ा है तो यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

19वीं सदी दौरे आखिर में अब यहां इस इमाम अहमद रज़ा खान का सामना गुस्ताख-ए-रसूल गोरी चमड़ी वाले अंग्रेज़ से था. जिसका सबसे पहला छुपा हुआ हमला बार ज़ात-ए-रसूल ए मकबूल नामुस-ए-रिसालत पर होता.

जिसने नज़्द के शैतान से पंजाब के कादियान तक को खरीद रखा था और इनके हिमायती पैरोकार चंद टको के एवज बिक चुके थे. यह वो दौर था जहां सारे अल्फ़ाज़ फिर से दोहराए जाने लगे थे जो दौरे अकबरी में पनपे थे शुकूक-ओ-शुब्हात और की एक मुनज़्ज़म तहरीक अंग्रेज़ों के इशारे पर चलाई गई इत्तिहाद-ए-इस्लामी  को पारा-पारा कर दिया गया गुस्ताखी और आहानाते रसूल की मुहीम चलाई गई बद मज़हवो और बातिल अक़ाइद और नज़रिये को फैलाया गया ऐसे में बरेली के अहमद रज़ा ने हज़ारो मनगढ़ंत रिवायतों की खबर ली और मुजस्समा-ए-इश्को मोहब्बत वफादारी-ए-रसूल में शर शार होकर ग़ुलाम-ए-औलिया बनकर इन तमाम बातिल फिरको के खिलाफ कलम के मैदान में कूद पड़े.

इस ग़र्ज से के मिल्लत-ए-इस्लामिया को फितना और फसाद से पाक किया जाए ज़हर और शहद में फर्क बताया जाए. वफादारी-ए-रसूल और गद्दार-ए-रसूल की पहचान करवा दी जाए. ऐ इमाम अहमद रज़ा आखिर इतनी शद्दो मत से इन बद मज़हवो पर कलम की रवानी क्यों ? फरमाते हैं- मुझे 3 कामों से दिलचस्पी है उनकी लगन मुझे अता की गई है तहफ्फुज़-ए-नामुस-ए-रिसालत सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम (ﷺ) और हुजूर की हिमायत करना और उनके अलावा बिदअती जो दीन के कथित दावेदार हैं.

हालांकि वो मुफ़सिद (फसादी) हैं हस्बे इस्तेतात और वजे़ह मज़हब-ए-हनफी के मुताबिक फतवा-ए-नवीसी फिर यह भी फरमाया के फकीर के सुपुर्द नामुस-ए-रिसालत तहफ्फुज सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम और खिदमत-ए-फ़िक़्हा दी गई. जिसको यह फकीर हस्बे इस्तेतात अंजाम दे रहा है यकीनन नबी करीम सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम की तरफ से इमाम अहमद रजा को चुन लिया गया था अब ये दौरे-ए-तारीकी जिसमें मुसलमानों के दिलों से अज़मत-ए-नबी और मोहब्बत-ए-रसूल सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम (ﷺ) को कम करने की सोची समझी साज़िश दुश्मनान-ए-इस्लाम यहूद और नसारा लादीनो मोलहिदीन और ज़मीर फरोशों की तरफ से शुरू कर दी गई थी.

जिसके तहत मुसलमानों ही की सफो से उलमा को खरीदा गया और शमशुल उलमा ख़ान बहादुर और सर के खिताबात का लालच देकर इनके ईमान और जमीर का सौदा किया गया इस हदफ (वादे) के साथ के मुसलमानों और उनके बच्चों के दिलों से अज़मत रसुल मोहब्बत-ए-रसूल सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम को खत्म कर दिया जाए इस्लाम दुश्मनों के इन नापाक कामों को इमाम अहमद रजा खान बरेलवी ने अपने कलम की तलवार से चकनाचूर कर दिया धज्जियां गुमराह फिरको की उड़ाई आप ने मरहबा सद मरहबा अहमद रज़ा खान क़ादरी.

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